उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Consumer Behaviour)
चूँकि बाजार का निर्माण उपभोक्ता या क्रेता समूहों से मिलकर होता है, अतः बाजार के बारे में समुचित जानकारी हेतु उपभोक्ता या क्रेता व्यवहार का अध्ययन अनिवार्य हो गया है, क्योंकि विपणन से सम्बन्धित सभी निर्णय उपभोक्ता व्यवहार से ही प्रभावित होते हैं। साथ ही वर्तमान जटिल प्रतिस्पर्द्धा के युग में उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किये बिना विपणन करना अलाभप्रद है।
उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ता की क्रय करने की निर्णय की प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत उपभोक्ता की क्रय आदतों, क्रय प्रवृत्तियों, क्रय ढंग एवं क्रय प्रेरणाओं का अध्ययन किया जाता है जो उसके क्रय करने के निर्णय को प्रभावित करती हैं। दूसरे शब्दों में उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ता के उस व्यवहार से है जो वे उत्पादों या सेवाओं के क्रय एवं उपयोग करने से पूर्व, क्रय निर्णय प्रक्रिया के दौरान अथवा क्रय करने के पश्चात् करते हैं। सरल शब्दों में, उपभोक्ता अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की सन्तुष्टि के लिए किसी वस्तु को कब (When), कैसे (How), कहाँ (Where), क्यों (Why) एवं किससे (Whom) खरीदता है ? इन बातों का पता लगाना ही उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन है।
(1) वाल्टर एवं पाल (Walter and Paul) के अनुसार, “उपभोक्ता व्यवहार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति यह निर्णय लेता है कि वस्तुओं और सेवाओं को खरीदता है तो क्या, कब, कहाँ, कैसे और किससे खरीदता है।” (“Consumer behaviour is the process whereby individual decide whether, what, when, were, how and from whom to produce goods and services.”)
(2) गोथे (Goethe) के अनुसार, क्रय करते समय किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार को क्रय व्यवहार कहा जा सकता है।” (“This whole behaviour of a person while making purchases may be termed as consumer behaviour.”)
(3) स्टिल, कण्डिफ एवं गोवोनी (Still, Cundiff and Govoni) के अनुसार, “क्रेता/उपभोक्ता व्यवहार वह क्रमबद्ध प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत कोई व्यक्ति बाजार-स्थान अथवा उत्पाद एवं सेवा सम्बन्धी निर्णय लेने के लिए अपने वातावरण से परस्पर प्रभावित होता है।” (“Buyer/Consumer behaviour is an orderly process whereby the individual interacts with his environment for the purpose of making market market-place decisions on products and services.”)
(4) वेब्सटर (Webster) के अनुसार, “क्रय व्यवहार से आशय उन सम्भावी क्रेताओं के मनोवैज्ञानिक सामाजिक एवं भौतिक व्यवहार से है जो मूल्यांकन, क्रय, उपभोग के लिए जाग्रत होते हैं और दूसरे क्रेताओं को उत्पादों एवं सेवाओं के बारे में बताते हैं।” (“Buying behaviour is the study of all psychological, social and physical behaviour of potential consumers as they become aware of, evaluate, purchase, consume and tell others about products and services.”)
(5) शिफमैन एवं कनुक (Shiffiman and Kanuk) के अनुसार, “उपभोक्ता व्यवहार वह अनुभाग है जो प्रबन्धकों को यह बताता है कि उपभोग्य वस्तुओं पर व्यय करने के निर्णय के पीछे क्या है। यह केवल यह सिद्ध नहीं करता कि क्या विनिमय किया गया है वरन यह भी दर्शाता है कि कहाँ, कब, क्यों और कितनी बार विनिमय किया गया है।” (“Consumer behaviour is the discipline that provides marketing managers with an understanding of what is behind the decisions to spend money, time and effort on consumption-related items. It probes not only. what is exchanged, but also why, where and when and how often.”)
आर. एस. बुसकिर्क (R. S. Buskirk) ने उपभोक्ता व्यवहार समझने हेतु निम्न प्रश्नों को हल करने की बात कही है
(1) कौन (Who)-क्रय निर्णय किसके द्वारा लिये जाते हैं ? क्रय निर्णय किस-किससे प्रभावित होता है ? वास्तविक क्रय कौन करता है एवं वस्तु का प्रयोग कौन करता है ?
(2) क्या (What)-उपभोक्ता क्या क्रय कर रहा है एवं बाजार के लिए आकर्षक वस्तु कौन-सी है ?
(3) कब (When)–(i) वर्ष में किन दिनों वस्तु क्रय की जाती है ? (ii) निर्णयकर्ता के जीवन की किस अवस्था में वस्तु क्रय की जाती है ? (iii) दिन में किन समयों पर वस्तु क्रय की जाती है ?
(4) कहाँ (Where) –(i) वस्तु के क्रय करने का निर्णय कहाँ पर लिया जाता है ? (ii) वास्तविक क्रय कहाँ पर किया जाता है ? (iii) फुटकर विक्रेता किस स्थान से क्रय करना चाहते हैं ?
(5) कैसे (How) -(i) उपभोक्ता किस तादाद में वस्तु क्रय करता है ? (ii) उपभोक्ता कितनी बार क्रय करता है ? (iii) उपभोक्ता वस्तु को प्राप्त करने में कितना प्रयास करता है ? (iv) उपभोक्ता वस्तु के बारे में कितनी सेवा चाहता है ? (v) उपभोक्ता नकद या उधार खरीदता है ? (vi) उपभोक्ता वस्तु कैसे क्रय करना चाहता है ? (vii) उपभोक्ता क्रय के उपरान्त वस्तु को घर तक किस प्रकार पहुँचाना चाहता है ? (viii) उपभोक्ता वस्तु का प्रयोग कैसे करता है ?
उपभोक्ता व्यवहार की प्रकृति (Nature of Consumer Behaviour)
उपभोक्ता व्यवहार की प्रकृति को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है (1) गत्यात्मक या परिवर्तनशील प्रकृति-उपभोक्ता व्यवहार एक क्रिया है जो स्थायी निरन्तर बदलती रहती है। आज जो वस्तु उपभोक्ता खरीदता है, यह आवश्यक नहीं, वह आगे भी उसी वस्तु को खरीदेगा। जब वह बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पाद देखता है तो उसका मन चलायमान हो जाता है। रहका
(2) अन्तर्विषयक प्रकृति–उपभोक्ता व्यवहार की अन्तर्विषयक प्रकृति है। इसे समझने के लिए विभिन्न विषयों, जैसे-मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानव-शास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि का अध्ययन करना होगा।
(3) मानसिक चिन्तन पर आधारित उपभोक्ता व्यवहार मानसिक चिन्तन है जिसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं के मस्तिष्क में चलने वाले विचारों, उद्वेगों, तरंगों एवं धारणाओं का अध्ययन किया जाता है।
(4) अनिश्चितता की प्रकृति उपभोक्ता व्यवहार में अनिश्चितता का तत्व निहित होता है। यह गारण्टी से नहीं कहा जा सकता कि उपभोक्ता अमुक समय पर प्रमुख प्रकार का ही व्यवहार करेगा। (5) मानव व्यवहार का अंग होना-उपभोक्ता व्यवहार मानव व्यवहार का ही एक अंग है जो वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय से सम्बन्धित है।
(6) आकलन में जटिलता उपभोक्ता व्यवहार का आकलन करना काफी जटिल है। उपभोक्ताओं की इच्छाएँ एवं आवश्यकताएँ अनेक होती है, जिनको समझना आसान नहीं है। साथ ही उनकी आवश्यकताओं का वरीयता क्रम भी स्थिर नहीं रहता है। अतः उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन करना एवं समझना काफी जटिल है।
(7) विपणन अवधारणा का मूलाचार होना-उपभोक्ता व्यवहार विपणन अवधारणा का मूलाधार है। समस्त विपणन प्रक्रियाएँ उपभोक्ता व्यवहार के चारों ओर मँडराती हैं। विपणन अवधारणा की सफलता ही उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन पर निर्भर करती है।
(8) व्यापक प्रक्रिया है उपभोक्ता व्यवहार एक व्यापक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रश्नों का हल खोजा जाता है, जैसे-उपभोक्ता कौन है ? उपभोक्ता क्या खरीदता है ? उपभोक्ता किससे खरीदता है ? उपभोक्ता कहाँ से खरीदता है ? उपभोक्ता क्यों खरीदता है ? उपभोक्ता कब खरीदता है ?
उपभोक्ता व्यवहार का क्षेत्र (Scope of Consumer Behaviour)
उपभोक्ता व्यवहार के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्न बातों का अध्ययन किया जाता है (1) उपभोक्ता कब क्रय करते हैं ? (When Consumers Buy ?) – एक विपणन प्रबन्धक को सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि उपभोक्ता वस्तु का कब क्रय करते हैं। यहाँ पर कब का अर्थ तीनों बातों से लगाया जाता है कि वह (i) किस मौसम में, (ii) सप्ताह के किस दिन, (iii) दिन के किस समय क्रय करते हैं। इन तीनों का विपणन में काफी महत्व है। इन्हीं के अनुरूप विपणन प्रयत्नों को नियोजित किया जाता है। कुछ वस्तुएँ ऐसी होती है जिनकी माँग किसी खास मौसम में काफी होती है। जैसे शादी के मौसम में कपड़ों व गहनों की माँग, जाड़ों में चाय, कॉफी व ऊनी कपड़ों की माँग, गर्मियों में ठण्डे पेय पदार्थों की माँग आदि। एक विपणन प्रबन्धक की माँग की पूर्ति हेतु अपने उत्पाद, विक्रय व अन्य क्रियाओं में आवश्यक करना चाहिए। इसी प्रकार साधारणतया यह देखा जाता है कि नौकरी वर्ग के व्यक्ति छुट्टी के दिन ही क्रय करते हैं। अतः विपणन प्रबन्धक को अपना विज्ञापन छुट्टी वाले दिन से पहले वाले दिन या छुट्टी वाले
(2) क्रय कौन करता है ? (Who does the buying ?)-क्रेता व्यवहार के विश्लेषण का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व यह देखना है कि क्रय कौन करता है। इसमें तीन बातें आती हैं-(i) क्रय करने का निर्णय कौन लेता है ? (ii) क्रय कौन करता है ? (iii) वस्तु को वास्तविक रूप से प्रयोग में कौन लाता है ? सामान्यतया यह देखा जाता है कि वस्तु का उपभोग तो पूरा परिवार करता है लेकिन उसको क्रय करने का कार्य परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा किया जा सकता है। जैसे बच्चों के लिए क्रय उसके माता-पिता के द्वारा किया जाता है। पत्नी के लिए क्रय उसके पति के द्वारा किया जाता है। पति अपने लिए स्वयं क्रय कर सकते हैं। एक शिक्षित परिवार में पत्नी अपने लिए, बच्चों के लिए व पति के लिए भी क्रय करती है। इसी प्रकार बच्चे भी अपने माता-पिता के लिए क्रय कर सकते हैं। वस्तु के विपणन पर इस बात का प्रभाव पड़ता है कि क्रय कौन करता है ? जैसे क्रय करने वाले होते हैं उसी के अनुरूप वस्तु बनायी जाती है और वैसे ही विपणन माध्यम अपनाये जाते हैं तथा उन्हीं के अनुरूप विज्ञापन कार्यक्रम व मूल्य नीतियाँ तैयार की जाती है। यदि वस्तु को स्त्रियों के द्वारा क्रय किया जाता है तो उनका रंग-रूप, डिजाइन व मूल्य उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए और यदि वस्तु बच्चों द्वारा क्रय की जाती है तो ऐसी वस्तुओं में वे सभी गुण होने चाहिए जो बच्चे चाहते हैं।
(3) उपभोक्ता कैसे क्रय करते हैं ? (How Consumers buy ?) – उपभोक्ताओं का क्रय करना उनकी आदतों एवं व्यवहारों से सम्बन्धित है जिसका विपणन पर प्रभाव पड़ता है। उसकी क्रय आदतों एवं व्यवहारों के अनुसार वस्तु एवं मूल्य सम्बन्धी नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं, विपणन कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं तथा प्रबन्धक (i) उपभोक्ता किस मात्रा में वस्तु क्रय करता है ? (ii) वह कितनी बार क्रय करता है ? (iii) वस्तु को प्राप्त करने में कितना प्रयास करता है ? (iv) वस्तु के बारे में कितनी सेवा चाहता है ? (v) वह नकद या उधार क्रय करता है ? (vi) वह वस्तु कैसे क्रय करना चाहता है ? (vii) वह क्रय के उपरान्त वस्तु को घर तक किस प्रकार पहुँचाना चाहता है ? (viii) वस्तु का प्रयोग कैसे करता है। उपभोक्ता वस्तु कैसे क्रय करते हैं ? यह बात दुकान या स्टोर के स्थान एवं अभिन्यास निर्णयों पर भी प्रभाव डालती है। यदि किसी वस्तु को गृहिणियों द्वारा अधिक क्रय किया जाता है तो गृहिणियों के लिए अलग से दुकान या स्टोर खोला जा सकता है।
(4) उपभोक्ता कहाँ क्रय करते हैं ? (Where Consumers buy ?) – एक विपणन प्रबन्ध को अपनी विपणन नीतियों का निर्धारण करते समय इस बात का भी पता लगा लेना चाहिए कि उपभोक्ता कहाँ से क्रय करते हैं ? इसमें दो बातें शामिल की जाती हैं-(i) उपभोक्ता क्रय करने का निर्णय कहाँ लेता है ? व (ii) वास्तविक रूप से क्रय कहाँ पर किया जाता है ? सामान्यतः यह देखा जाता है कि उपभोक्ता बहुत-सी वस्तुओं के सम्बन्ध से क्रय करने का निर्णय अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर घर पर ही लेता है। टिकाऊ वस्तुओं जैसे-फ्रिज, टेलीविजन, वाशिंग मशीन आदि के क्रय निर्णय इस प्रकार लिये जाते हैं। कभी-कभी यह भी पाया जाता है कि उपभोक्ता घर से निर्णय करके वस्तु को क्रय करने नहीं जाता है बल्कि उसको जो वस्तु किसी दुकान पर या स्टोर पर पसन्द आ जाती है, उसको क्रय करने का निर्णय वहीं स्टोर पर ले जाता है। यह भी पाया जाता है कि उपभोक्ता घर पर वस्तु को क्रय करने का निर्णय तो लेता है लेकिन ब्राण्ड की पसन्द दुकान पर ही करता है। ऐसी स्थिति में वस्तु का पैकिंग अच्छा होना चाहिए तथा विज्ञापन भी किया जाना चाहिए ताकि उपभोक्ताओं को ब्राण्ड की जानकारी दी जा सके और उसको अपनी ओर आकर्षित किया जा सके। कोई भी उपभोक्ता अज्ञात ब्राण्ड को क्रय करना पसन्द नहीं करता है चाहे उसका पैकेजिंग कितना भी आकर्षक क्यों न हो।
उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन का महत्व (Importance of Study of Consumer Behaviour)
विपणन की प्राचीन विचारधारा के अनुसार क्रेता या उपभोक्ता को विवेकहीन, असहाय एवं इच्छारहित व्यक्ति समझा जाता था, इसलिए विक्रेता यह मान लेता था कि उपभोक्ता को किसी भी प्रकार की वस्तु किसी भी मूल्य पर बेची जा सकती है। उस समय के बाजार को विक्रेता का बाजार (Seller’s market) कहा जाता था। फलस्वरूप प्राचीन समय में वस्तुओं का अभाव होने के कारण
जो कुछ भी बनता था, वह सब आनन-फानन में बिक जाता था। इसी कारण पहले विपणनकर्ता द्वारा उपभोग के सम्बन्ध में केवल परिमाणात्मक तथ्यों जैसे जनसंख्या एवं आय सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करना पर्याप्त माना जाता था। वर्तमान समय का क्रेता विवेकहीन या असहाय नहीं है फलस्वरूप आज के बाजार को क्रेता बाजार (Buyer’s market) कहा जाता है। इस कारण बाजार में वही वस्तु विक सकती है जो उपभोक्ता पसन्द करता है अतः वर्तमान समय में एक विपणनकर्ता को अपनी वस्तु का सफलतापूर्वक विक्रय करने के लिए परिमाणात्मक तथ्यों के साथ-साथ गुणात्मक तथ्यों के सम्बन्ध में • विस्तृत जानकारी प्राप्त करना आवश्यक हो गया है। वर्तमान समय में निम्न कारणों से उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन महत्वपूर्ण हो गया है
(1) उत्पादन सम्बन्धी निर्णय के लिए क्रेता व्यवहार व्यवसाय की उत्पादन नीतियों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, यदि प्रबन्धक को क्रेता व्यवहार के अध्ययन से यह पता चल जाता है कि क्रेता उसकी वस्तु को अच्छी पैकिंग के कारण पसन्द करते हैं तो प्रबन्ध वस्तु की पैकिंग पर अधिक ध्यान देगा। अतः क्रेता के व्यवहार के अध्ययन के बाद ही उत्पादक पैकिंग पर अपना ध्यान देने का निर्णय ले सकते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता व्यवहार उत्पादन नीतियों को प्रभावित करते हैं।
(2) मूल्य सम्बन्धी निर्णयों के लिए यदि विक्रेता क्रेता व्यवहार को ध्यान में रखकर अपनी वस्तु का मूल्य निश्चित नहीं करता तो वह अधिक विक्रय करने में असमर्थ रहेगा क्योंकि क्रेता का व्यवहार वस्तु की मूल्य नीति को प्रभावित करता है, जैसे-कुछ व्यक्ति वस्तु का क्रय केवल इसलिए करते हैं कि समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ जायेगी। ऐसी दशा में
(3) विक्रय प्रवर्तन सम्बन्धी निर्णयों के लिए-विक्रय प्रवर्तन सम्बन्धी नीतियाँ भी क्रेता व्यवहार से प्रभावित होती हैं, जैसे कोई व्यक्ति कार इसलिए क्रय करता है उसकी समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जायेगी तो विक्रेता कार का अधिक उत्पादन कर सकता है।
(4) विक्रय एवं वितरण सम्बन्धी निर्णयों के लिए-विक्रय एवं वितरण सम्बन्धी निर्णयों के लिए। भी क्रेता व्यवहार का अध्ययन सहायक होता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की बिक्री केवल इसलिए होती है क्योंकि वह बाजार में नियमित रूप से और सरलता से उपलब्ध है। अब यदि विक्रेता उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन करके वितरण सुविधाओं पर बल देता है तो उसकी बिक्री वृद्धि की सम्भावनाएँ बढ़ जायेंगी।
(5) गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने के लिए आज प्रत्येक वस्तु के अनेक उत्पादक एवं विक्रेता है। प्रत्येक उत्पादक एवं विक्रेता अपनी वस्तु को यथाशीघ्र बेचना चाहता है। कुछ उत्पादक/ विक्रेता तो अपनी वस्तु को गलाकाट प्रतियोगिता में लागत से कम कीमत पर बेचने के लिए तत्पर हो जाते हैं। इस गलाकाट प्रतियोगिता में वही उत्पादक/विक्रेता अपने अस्तित्व को बचाये रख सकता है जिसने उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किया हो।
(6) उपभोक्ता आन्दोलन में सरकारी योगदान की जानकारी के लिए आज लगभग सभी विकासशील एवं विकसित देशों में उपभोक्ता आन्दोलन के क्षेत्र में सरकार के योगदान में निरन्तर वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए, आज सरकार इस बात का तेजी से प्रचार कर रही है कि खाद्य पदार्थ खुला न खरीदा जाये क्योंकि इसमें मिलावट होती है एवं यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अमेरिका में खाद्य पदार्थ खुला बेचना दण्डनीय अपराध है। ऐसी स्थिति में उसी खाद्य पदार्थ को उपभोक्तागण खरीदना पसन्द करेंगे जिसका आकर्षक ढंग से पैकिंग किया गया हो।
(7) फैशन में परिवर्तन के अनुसार उत्पादन करने के लिए आज फैशन में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। जो उत्पाद आज उपभोक्ता/क्रेता पसन्द कर रहे हैं, वह कुछ ही दिनों में अप्रचलन में आ जाता है और उपभोक्ता उसका त्याग कर देते हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादक को उपभोक्ता की पसन्द का अध्ययन करना परम आवश्यक है और उसी के अनुसार उत्पाद में आवश्यक परिवर्तन करते रहना चाहिए।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि क्रेता व्यवहार का अध्ययन एक व्यवसायी के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि क्रेता व्यवहार से व्यवसाय की सभी नीतियाँ प्रभावित होती हैं।