” भविष्य में क्या करना है? इसको भविष्य में तय करना नियोजन कहलाता है।” इसी तथ्य को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि “नियोजन में भविष्य की ओर देखा जाता है कि हम कहाँ जाना चाहते है? हम क्या करना चाहते हैं ? और ऐसा करने में क्या कठिनाइयाँ सामने आ सकती है ?” विपणन नियोजन एक प्रकार की क्रिया है जिसमें एक संस्था अपने को अपने उद्देश्यों और अवसरों को प्राप्त करने के लिए मिलाती है। इसमें एक संस्था यह निर्णय लेती है कि भविष्य को अपने साधनों में श्रम व प्रबन्ध, वस्तु, मशीनें व पूँजी आदि का उपयोग विभिन्न वस्तुओं के निर्माण हेतु किस प्रकार करेगी ?
विपणन कार्यक्रम उत्पाद नियोजन से ही प्रारम्भ होता है। उत्पादन नियोजन में यह निश्चित किया जाता है कि किन-किन उत्पादों का निर्माण करना है ? कौन-कौन से उत्पाद समाप्त करने हैं ? उत्पाद श्रेणी में क्या विस्तार या संकुचन करना है ? उत्पादों में किस प्रकार के सुधार अपेक्षित है? प्रत्येक वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में कब करना है और मूल्य निर्धारित का आधार क्या होगा आदि।
(1) विलियम जे. स्टाण्टन (William J. Stanton) के अनुसार, “वस्तु नियोजन में ये सब क्रियाएँ आती हैं जो निर्माता और मध्यस्थ को इस योग्य बनाती है कि वे यह तय कर सकें कि कम्पनी की वस्तु पंक्ति में कौन-कौन सी वस्तुएँ होनी चाहिए।”
जिनसे कि उपभोक्ताओं की असंख्य इच्छाओं को सर्वोत्तम ढंग से पूरा किया जा सके, वस्तुओं में विक्र योग्यता को जोड़ा जा सके और उन विशेषताओं को तैयार वस्तुओं में शामिल किया जा सके।”
(3) मैन्सन एवं रथ (Manson and Rath) के अनुसार, “एक वस्तु के जीवन की जन्म से लेकर उसका कम्पनी की वस्तु पंक्ति से परित्याग तक के नियोजन, निर्देशन एवं नियन्त्रण की सभी स्थितियाँ वस्तु नियोजन कहलाती है।”
(4) कार्ल एच. टिटजन (Karl H. Tietjen) के अनुसार, उत्पाद नियोजन से आशय नये उत्पादों की खोज, जाँच-पड़ताल विकास एवं वाणिज्यकरण, वर्तमान पंक्तियों में सुधार और सीमान्त या अलाभकारी उत्पादों के परित्याग आदि के सम्बन्ध में एक सीमां निश्चित करना तथा पर्यवेक्षण करने से हैं। ”
उत्पाद या वस्तु नियोजन का महत्व (Importance of Product Planning)
वस्तु नियोजन के महत्व को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
(1) विपणन कार्यक्रम के प्रारम्भिक बिन्दु- एक फर्म के सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम के लिए वस्तु-नियोजन आरम्भ स्थान है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी संस्था को अपना विपणन कार्यक्रम बनाना है तो उसको सबसे पहले वस्तु नियोजन अवश्य ही करना चाहिए जिससे कि वस्तु में वे सभी विशेषताएँ आ जायें जिनकी अभिलाषा उपभोक्ताओं में है।
(2) प्रबन्धकीय योग्यता का परिचायक-वस्तु नियोजन प्रबन्धकीय योग्यता का परिचायक होता है। इसलिए यह कहा जाता है कि वस्तु नियोजन का अभाव संगठन के प्रबन्धकीय दिवालियापन का द्योतक है और यह संकेत करता है कि व्यवसाय अपने भाग्य पर छोड़ दिया गया है।
(3) सामाजिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति का साधन-वस्तु नियोजन व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने का भी एक साधन है। यह कार्य वस्तु नियोजन के आधार पर ही सम्भव है।
(4) प्रतिस्पर्धी हथियार-एलेक्जेण्डर क्रॉस एवं हिल ने वस्तु नियोजन को प्रतिस्पर्धी हथियार कहकर पुकारा है और उनका कहना है कि वस्तु नियोजन आधुनिक विपणन की एक प्रमुखता है। वस्तु का मूल्य निर्धारण, ग्राहक सेवाएँ, विक्रय एवं विक्रय संवर्द्धन कार्यक्रम, आदि सभी वस्तु नियोजन व्यवहार पर निर्भर करते हैं। बिना वस्तु नियोजन एवं विकास के सफलता मिलना कठिन है।
(5) विस्तृत क्षेत्र – वस्तु नियोजन का क्षेत्र काफी व्यापक है। इसमें वस्तु विकास एवं वस्तु नवाचार आदि जैसी सभी बातें सम्मिलित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, कौन-सी वस्तु का निर्माण किया जाये ? वस्तु रेखा का विस्तार किया जाये या संकुचन ? वस्तु के नवीन उपयोगों की खोज की जाये या नहीं। वस्तु के लिए किस ब्राण्ड लेबिल व पैकिंग का प्रयोग किया जाये ? आदि ।
उत्पाद नियोजन का क्षेत्र (Scope of Product Planning)
उत्पाद नियोजन के क्षेत्र में निम्न बातों को शामिल किया जाता है-
(1) उत्पाद निर्णय-इसके अन्तर्गत निर्माता यह निर्णय लेता है कि किस उत्पाद की बाजार में माँग हैं तथा कौन-से उत्पाद का अधिक विक्रय किया जा सकता है। इसके लिए निर्माता उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं रुचियों का पता लगाता है।
(2) उत्पाद का नाम-उत्पाद नियोजन में उत्पाद का नाम भी महत्वपूर्ण होता है। बाजार में उत्पाद की ग्राहक आसानी से माँग कर सके इसके लिए ऐसा नाम रखा जाता है जो तथा आसानी से बोला जा सके।
(3) उत्पाद रंग-कोई भी ग्राहक जब उत्पाद क्रय करने जाता है तो उस ग्राहक को उत्पादों का रंग भी अपनी ओर आकर्षित करता है। जब विक्रेता बाजार था तब रंग का विशेष महत्व नहीं था, किन्तु अब क्रेता बाजार होने के कारण क्रेता बाजार में रंग अधिक प्रभावशाली हो गया है। क्रेता वही उत्पाद खरीदता है जिसका रंग उसको अच्छा लगता है। अतः उत्पादक को उपभोक्ताओं की अभिरुचियों के अनुरूप ही उत्पादों का रंग रखना चाहिए।
(4) उत्पाद की डिजाइन एवं आकार उत्पाद की डिजाइन व आकार से आशय उस उत्पाद के ढाँचे से होता है जो उस उत्पाद विशेष को शक्ल, रंग तथा अन्य गुण प्रदान किये जाते हैं। उपभोक्ता की क्रय प्रक्रिया बहुत कुछ उत्पाद की डिजाइन तथा आकृति से भी प्रभावित होती है। उत्पादनकर्ता को ग्राहक अनुसन्धान द्वारा मालूम करना चाहिए कि ग्राहक किस आकार तथा डिजाइन के उत्पादन अधिक पसन्द करते हैं। उत्पाद की डिजाइन इस प्रकार की होनी चाहिए जो देखने में आकर्षक लगे।
(5) उत्पाद का मूल्य किसी भी उत्पाद का मूल्य उसकी बिक्री को अधिक मात्रा में प्रभावित करता है। अतः उत्पाद नियोजन में उत्पाद की कीमत पर विशेष ध्यान दिया जाता है। एक ग्राहक उत्पाद के अन्य गुणों के साथ-साथ विभिन्न उत्पादों के मूल्यों की सापेक्षिक तुलना भी करता है। उत्पाद की कीमत काफी सोच-समझकर ही निर्धारित की जानी चाहिए।
(6) उत्पादों की ब्राण्ड, पैकेजिंग तथा लेबलिंग-उत्पाद नियोजन में उत्पाद की ब्राण्ड, पैकिंग तथा लेबलिंग का विशेष स्थान होता है। ब्राण्ड वह चिन्ह या नाम है जिससे किसी उत्पाद को पहचाना जाता है तथा उसको याद रखा जाता है। पैकेजिंग किसी उत्पाद के ग्राहक तक सुरक्षित पहुँचाने के उद्देश्य तथा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए की जाती है। लेबलिंग पैकिंग के ऊपर एक स्लिप चिपकायी जाती है जिस पर ब्राण्ड, नाम तथा चिन्ह अंकित किये जाते हैं।
(7) उत्पाद की किस्म-उत्पाद नियोजन में उत्पाद की किस्म का भी विशेष स्थान होता है। उपभोक्ता प्रायः अपनी सीमित आय का इस प्रकार उपयोग करना चाहते हैं कि उनकी क्रय-शक्ति का पूरा-पूरा सदुपयोग हो सके उत्पाद का जिस उद्देश्य से ग्राहक उपयोग करना चाहे, उसके लिए वस्तु का प्रयोग करते समय कोई कठिनाई न आये।
(8) उत्पाद शैली-उत्पाद शैली का आशय किसी उत्पाद को विशिष्ट कलात्मक तरीके से प्रस्तुतीकरण, निर्माण तथा क्रियान्वयन से लिया जाता है। उत्पाद शैली से बेची जाने वाली वस्तु का सौन्दर्य या आकर्षण बढ़ाया जा सकता है। उत्पाद शैली में सुधार उत्पाद की माँग में वृद्धि करता है।
(9) नये प्रयोगों की खोज-उत्पादित उत्पादों को उपभोक्ताओं के लिए अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए उसके नये-नये प्रयोग खोजे जाते हैं, ताकि उसकी माँग को बढ़ाया जा सके। इस सम्बन्ध में अनुसन्धान करके मालूम किया जाता है कि किस प्रकार किसी उत्पाद की माँग बढ़ायी जा सकती है।
(10) उत्पाद नवाचार-उत्पाद नवाचार उत्पाद नियोजन का महत्वपूर्ण अंग है। उत्पाद नवाचार से आशय उत्पाद में नवीनता लाना है। उत्पाद नवाचार का महत्व बढ़ जाने के कारण यह उत्पाद नियोजन का अनिवार्य अंग बन गया है।