उन चरणों की विवेचना कीजिए जिन्हें किसी नवीन उत्पाद के नियोजन एवं विकास के निमित्त उठाया जाना चाहिए।

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नवीन उत्पाद के नियोजन एवं विकास की प्रक्रिया के चरण (Steps in Process of Planning and Development of New Product)

नवीन उत्पाद के नियोजन एवं विकास के निमित्त उठाये जाने वाले चरणों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(I) नवीन उत्पाद विचारों का सृजन (Creation of New Product Ideas) नवीन उत्पाद विचारों का सृजन अथवा नये विचार किसी नवीन उत्पाद प्रक्रिया का प्रारम्भ बिन्दु है। किसी नवीन उत्पाद के विकास के लिए यह परम आवश्यक है कि फर्म को निरन्तर नवीन विचारों की प्राप्ति होती रहे। इन विचारों की प्राप्ति के अनेक स्रोत हो सकते हैं। उनमें से प्रमुख स्रोत निम्न हैं-(i) ग्राहक (Customers); (ii) कर्मचारीगण विक्रेताओं सहित (Employees Including Salesmen); (iii) प्रतिस्पर्धी उत्पाद (Competitive Product); (iv) वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञ (Scien tists and Technical Experts); (v) विश्वविद्यालय एवं सरकारी अनुसन्धान प्रयोगशालाएँ (Universities and Governments Reserach Laboratories); (iv) उच्च प्रबन्ध (Top Managment) तथा (vii) अन्य स्रोत (Other Sources), जैसे-थोक एवं फुटकर विक्रेता, संस्था के वितरण एवं एजेण्टस, कच्चे माल के पूर्तिकर्ता, केन्द्रीय तथा राज्य सरकार के तत्वावधान में कार्यरत कुछ संस्थाएँ (औद्योगिक विकास निगम), राज्य उद्योग विभाग आदि।

(II) विचारों की छानबीन (Screening of Ideas) नवीन उत्पाद अथवा पुराने उत्पाद के  नवाचार से सम्बन्धित विभिन्न विचारों को एकत्रित करने के बाद प्रत्येक विचार का विस्तृत रूप से विश्लेषण एवं मूल्यांकन करके निम्नांकित दो बातों का पता लगाया जाता है

1. क्या विचार निर्माता के उद्देश्यों, जैसे-(1) विक्रय वृद्धि उद्देश्य, (ii) लाभ उद्देश्य उद्देश्य आदि की पूर्ति करता है, अथवा नहीं ?

2. क्या विचार निर्माता के साधनों, जैसे-(i) आवश्यक तकनीकी ज्ञान (ii) आवश्यक पूँजी, एवं (ii) आवश्यक उत्पाद की सुविधाओं आदि संगति रखता है अथवा नहीं ?

यदि किसी विचार के सम्बन्ध में प्रश्नों के उत्तर नहीं में आते हैं तो उस विचार को छोड़ देते हैं और यदि प्रश्नों के उत्तर हाँ में आते हैं तो ऐसे विचारों को चुन लिया जाता है। यदि इस प्रकार से चुने गए विचार अधिक है तो उनके महत्व के क्रम को निर्धारित किया जाता है। चुने गए विचारों के महत्व का क्रम निर्धारित करने के लिए जाँच सूचियों (Check Lists) का प्रयोग किया जा सकता है। यह पंक्रिया ही विचारों की छानबीन कहलाती है।

(III) व्यावसायिक विश्लेषण (Business Analysis)-उत्पाद विकास प्रक्रिया के इस चरण के अन्तर्गत विचार पर ठोस कार्य प्रारम्भ हो जाता है। इस चरण में प्रबन्ध मुख्य रूप से निम्न कार्य करता है- (1) उत्पाद विशेषताओं की पहचान करना; (2) बाजार माँग और उत्पाद की लाभदायकता का अनुमान लगाना; (3) उत्पाद के विकास हेतु कार्यक्रम तैयार करना एवं (4) उत्पाद की व्यावहारिकता के सम्बन्ध में गहन अध्ययन हेतु उत्तरदायित्व सौंपना

इस प्रकार के अन्तर्गत इस बात का पता लगाया जाता है कि नया उत्पाद व्यावसायिक दृष्टि से उपयुक्त रहेगा अथवा नहीं। व्यावसायिक विश्लेषण के निम्न तीन प्रकार के अनुमान लगाये जाते हैं 1. भावी बिक्री का अनुमान-नये उत्पाद की भावी बिक्री का सही पूर्वानुमान लगाना तो असम्भव ही है लेकिन नये उत्पाद के सम्बन्ध में मध्यस्थों की राय का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके बिक्री के भावी अनुमान लगाये जा सकते हैं।

2. भावी लागतों का अनुमान-नए उत्पाद की भावी बिक्री के अनुमान के पश्चात् नए उत्पादन, वितरण, विज्ञापन एवं विक्रय से सम्बन्धित लागतों का अनुमान लगाया जाता है।

3. भावी लाभों का अनुमान-नये उत्पाद की बिक्री और लागतों का अनुमान लगाने के बाद नए उत्पाद के उत्पादन से होने वाले भावी लाभों का अनुमान लगाया जाता है और लाभों की राशि से विनियोजित पूँजी पर प्रतिफल (Return of Invested Capital) की गणना की जाती है।

वास्तव में, व्यावसायिक विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य एक मॉडल का विकास करना होता है जिससे यह ज्ञात हो सके कि एक निर्दिष्ट समयावधि में अमुक उत्पाद विचार लाभ, लागत और विक्रय को किस प्रकार प्रभावित करेगा। इसमें कम्पनी के उद्देश्यों और संसाधनों से संगति रखने वाले विचारों के सम्बन्ध में सम्भावित जोखिम एवं लाभदायकता का सावधानी से विश्लेषण किया जाता है। इस कार्य के लिए लागत, माँग एवं बाजार के स्वभाव एवं आकार के सम्बन्ध में विस्तृत सूचना प्राप्त की जाती है।

(IV) उत्पाद विकास (Product Development)-प्रक्रिया के इस कारण के अन्तर्गत एक विचार को, जो अब तक कागजों पर ही था, भौतिक उत्पाद (Physical Product) में परिवर्तित किया जा सकता है। निर्धारित विशिष्ट विवरणों (Specifications) के अनुसार उत्पाद का थोड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता है या उत्पाद मॉडल बनाये जाते हैं। उत्पाद के इन्जीनियरिंग और उत्पादन व्यावहारिकता के निर्धारण के लिए आवश्यक प्रयोगशाला परीक्षण और अन्य प्राविधिक मूल्यांकनों का कार्य किया जाता है। सामान्यतः वस्तु के विकास में निम्न अवस्थाएँ आती हैं—(1) आदर्श रूपों का विकास, (2) उपभोक्ता रुचि परीक्षाएँ एवं (3) ब्राण्ड एवं पैकेजिंग।

(1) आदर्श रूपों का विकास (Developing Prototypes) व्यावसायिक विश्लेषण की अवस्था को पार करने पर विचार को तकनीकी विभाग को सौंप दिया जाता है जिससे वह उत्पाद के ऐसे आदर्श • मितव्ययी हो और जो अन्य कठिनाइयों से भी मुक्त हो। तकनीकी विभाग द्वारा अनेक मॉडलों का रूप या मॉडल का निर्माण एवं विकास कर सके जो ग्राहकों को पसन्द आने वाले हों; जिसका निर्माण निर्माण किये जाने पर ही बड़ी सावधानी से एक सन्तोषजनक मॉडल का चुनाव किया जाता है।

(2) उपभोक्ता रुचि परीक्षाएँ (Consumer Taste Testing) तकनीकी विभाग द्वारा बनाये गये मॉडलों या आदर्श रूपों के सम्बन्ध में उपभोक्ताओं की रुचि का पता लगाया जाता है। उपभोक्ता रुचि परीक्षाओं द्वारा विभिन्न मॉडलों के सम्बन्ध में उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं का ज्ञान करके सर्वोत्तम मॉडल का चुनाव किया जाता है।

(3) ब्राण्ड एवं पैकेजिंग (Brand and Packaging)-उपभोक्त रुचि के निर्धारण के बाद ब्राण्ड और पैकेजिंग की समस्या आती है। ब्राण्ड एवं पैकेजिंग के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी अगले अध्याय 11 में दी गई हैं। नये उत्पाद का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने से पूर्व परीक्षात्मक विपणन आवश्यक है। परीक्षात्मक विपणन से आशय नये उत्पाद का थोड़ा उत्पादन करके उसको बाजार से किसी भाग में प्रस्तुत करके ग्राहकों की उस नये उत्पाद के सम्बन्ध

(IV) परीक्षात्मक विपणन (Test Marketing) में प्रतिक्रिया का पता लगाने से है। यदि परीक्षात्मक विपणन से उत्पादन की कुछ कमियों का पता चलता है तो उनको दूर करने के पश्चात् ऐसे उत्पाद का पुनः परीक्षात्मक विपणन करना चाहिए। वास्तव में परीक्षात्मक विपणन के द्वारा नये उत्पाद के सम्भावित विक्रय का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है

और नए उत्पाद के दोषों को दूर करके असफलता से बचा जा सकता है। फिलिप कोटलर (Philip Kotler) के अनुसार, “परीक्षात्मक विपणन वह स्थिति है जिसमें

सम्पूर्ण उत्पाद और विपणन कार्यक्रम को सर्वप्रथम छोटी संख्या में अच्छी प्रकार से चुने हुए सुनिश्चित विक्रय वातावरण में आजमाया जाता है।” मैसन व रथ (Mason and Rath) के मत में, “परीक्षात्मक विपणन का अर्थ वस्तु को बड़े पैमाने पर बेचने से पूर्व सावधानी से चुने हुए कुछ क्षेत्रों में परीक्षण के तौर पर उपभोक्ताओं को वस्तुओं का विपणन करना है।” इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परीक्षात्मक विपणन में नवीन उत्पाद को सम्पूर्ण बाजार में प्रस्तुत नहीं किया जाता बल्कि बाजार के कुछ ही भाग में प्रस्तुत किया जाता है और जिसका चुनाव बहुत सावधानी से किया जाता है। यह ग्राहकों की प्रतिक्रियाओं का भी पता लगाने के लिए किया जाता है। इसमें वस्तु के साथ-साथ विपणन कार्यक्रम की भी जाँच की जाती है। परीक्षात्मक विपणन के लिए वस्तु का उत्पादन थोड़ी संख्या में ही किया जाता है। अच्छे परिणामों की प्राप्ति पर वस्तु को बड़े पैमाने पर व्यावसायिक आधार पर समस्त बाजार में प्रस्तुत किया जाता है।

(V) उत्पाद का वाणिज्यीकरण (Commercialisation of Product) – जब कोई नया उत्पाद परीक्षणात्मक विपणन की कसौटी पर खरा उतरता है तो उसे व्यावसायिक रूप से बाजार में लाने के लिए उसके मॉडल, ब्राण्ड तथा पैकेजिंग आदि के बारे में फिर से विचार कर लेना चाहिए और उसके विज्ञापन एवं विक्रय संवर्धन हेतु कार्यक्रम तैयार करने चाहिए। प्रायः उत्पाद के वाणिज्यिीकरण की प्रक्रिया सम्पूर्ण बाजार में एक साथ लागू नहीं की जाती, वरन् प्रारम्भ में कुछ बड़े शहरों के बाजार क्षेत्रों में उत्पाद को प्रस्तुत किया जाता है और फिर धीरे-धीरे सम्पूर्ण बाजार क्षेत्रों में बिक्री के लिए उत्पाद को भेजा जाता है।

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